*【राजस्थान का साहित्य भाग—2】*

*【राजस्थान का साहित्य भाग—2】*



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*[चारण साहित्य]*
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➤ राजस्थानी भाषा का सबसे समृद्व साहित्य है।

➤ चारण कवियों ने इसका लेखन किया है। यह साहित्य वीर रस से ओत -प्रोत है।

➤ यह साहित्य प्रबन्ध काव्यों, गीतों, दोहों, सौरठों, कुण्डलियोें, छप्पयों, सवैयों आदि छन्दों में उपलब्ध है।

➤ चारणसाहित्य में अचलदास खींची री वचनिका, पृथ्वीराज रासो, सूरज प्रकाश, वंशभास्कर, बाकीदास ग्रन्थावली आदि प्रमुख हैं।

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*[जैन साहित्य]*
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➤ इस में वह साहित्य आता है, जो जैनमुनियों द्वारा लिखित है।


➤ वज्रसेन सूरिकृत-भरतेश्वर बाहुबलि घोर, शालिचंन्द्र सूरि कृत-भरतेश्वर बाहुवलिरास प्राचीन राजस्थानी ग्रन्थ हैं।


➤ कालान्तर में बृद्धिरास, जंबूस्वामी चरित, आबरास, स्थूलिभद्ररास, रेवंत गिरिरास, जीवदयारासु तथा चन्दनबाला रास आदि ग्रन्थों की रचना हुई।



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*[संत साहित्य]*
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➤ राजस्थान के साहित्यिक विरासत में संत साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है।


➤ भक्ति आन्दोलन के समय दादू पंथियों और राम स्नेही सन्तों ने साहित्य का सृजन किया।


➤ इसके अतिरिक्त मीराबाई के पद, महाकवि वृंद के दोहे, नाभादास कृत वैष्णव भक्तों के जीवन चरित, पृथ्वीराज

➤ राठौड़ (पीथल) कृत वेलिक्रिसन रूकमणी री, सुन्दर कुंवरी के राम रहस्य पद, तथा सुन्दरदास और जांभोजी की रचनाएं आदि महत्वपूर्ण हैं।

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*[लोक साहित्य]*
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➤ राजस्थान का लोक साहित्य भी समृद्व है।

➤ इसके अन्तर्गत लोकगीत, लोक गथाएं, लोक नाटय, पहेलियाँ, प्रेम कथाएँ और फडें आदि है।

➤ तीज, त्यौहार, विवाह, जन्म, देव पूजन और मेले अधिकतर गीत लोक साहित्य का भाग हैं।

➤ राजस्थान में ‘फड’ का प्रचलन भी हैं।

➤ किसी कपड़े पर लोक देव ता का चित्रण किया जाकर उसके माध्यम से ऐतिहासिक व पौराणिक कथा का प्रस्तुतिकरण किया जाना ‘फड़’ कहलाता है।

➤ देवनारायण महाराज की फड़ बापूजी री फड़ आदि इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

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