अत्यंत महत्वपूर्ण हिंदी के प्रशन उत्तर
1 काव्य के तत्व माने गए है -दो
2 महाकाव्य के उदाहरण है -
रामचरित मानस, रामायण, साकेत, महाभारत, पदमावत, कामायनी, उर्वशी, लोकायतन, एकलव्य आदि
3 मुक्तक काव्य के उदाहरण है-
मीरा के पद, रमैनियां, सप्तशति
4 काव्य कहते है -
दोष रहित, सगुण एवं रमणियार्थ प्रतिपादक युगल रचना को
5 काव्य के तत्व है -
भाषा तत्व, बुध्दि या विचार तत्व, कल्पना तत्व और शैली तत्व
6 काव्य के भेद है -
प्रबंध (महाकाव्य और खण्ड काव्य), मुक्तक काव्य
7 वामन ने काव्य प्रयोजन माना -
दृष्ट प्रयोजन (प्रीति आनंद की प्राप्ति) अदृष्ट प्राप्ति (कीर्ति प्राप्ति)
8 भामह की काव्य परिभाषा है -
शब्दार्थो सहित काव्यम
9 प्रबंध काव्य का शाब्दिक अर्थ है -
प्रकृष्ठ या विशिष्ट रूप से बंधा हुआ।
10 रसात्मक वाक्यम काव्यम परिभाषा है -
पंडित जगन्नाथ का
11 काव्य के कला पक्ष में निहित होती है -
भाषा
12 काव्य में आत्मा की तरह माना गया है-
रस
13 तद्दोषों शब्दार्थो सगुणावनलंकृति पुन: क्वापि, परिभाषा है -
मम्मट की
14 काव्य के तत्व विभक्त किए गए है-
चार वर्गो में प्रमुखतया रस, शब्द
15 कवि दण्डी ने काव्य के भेद माने है-
तीन
16 रमणियार्थ प्रतिपादक शब्द काव्यम की परिभाषा दी है -
आचार्य जगन्नाथ ने
17 काव्य रूपों में दृश्य काव्य है -
नाटक
18 काव्य प्रयोजन की दृष्टि से मत सर्वमान्य है -
मम्मटाचार्य का
19 काव्य प्रयोजनों में प्रमुख माना जाता है-
आनंदानुभूति का
20 काव्य रचना का प्रमुख कारण (हेतु) है -
प्रतिभा का
21 महाकाव्य और खण्ड काव्य में समान लक्षण है -
कथानक उपास्थापन एक जैसा होता है।
22 काव्य रचना के सहायक तत्व है -
वर्ण्य विषय(भाव), अभिव्यक्ति पक्ष (कला), आत्म पक्ष
23 मम्मट के काव्य प्रयोजन है -
यश, अर्थ, व्यवहार ज्ञान, शिवेतरक्षति, संघ पर निवृति, कांता सम्मलित
24 मम्मट के शिवेतर का अभिप्राय है –
अनिष्ट
25 सगुणालंकरण सहित दोष सहित जो होई... परिभाषा है -
चिंतामणि की
26 भारतीय काव्य शास्त्र के अनुसार काव्य के तत्व है -
1 शब्द और अर्थ, 2 रस, 3 गुण, 4 अलंकार, 5 दोष, रीतिय
ज्ञान विस्तार, मनोरंजन, लोक मंगल, उपदेश
28 खण्ड काव्य में सर्गखण्ड होते है -
सात से कम
29 शैली के आधार पर काव्य भेद है -
गद्य, पद्य, चम्पू
30 दृश्य काव्य के भेद है -
रूपक और उप रूपक
31 महाकाव्य का प्रधान रस होता है -
वीर, शृंगार या शांत रस
32 महाकाव्य के प्रारंभ में होता है -
मंगलाचरण या इष्टदेव की पूजा
33 रूपक के भेद है -
नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, व्यायोग, समवकार, वीथि, ईहामृग, अंक
34 महाकाव्य में खण्ड या सर्ग होते है -
आठ और अधिक
35 महाकाव्य के एक सर्ग में एक छंद का प्रयोग होता है। इसका परिवर्तन किया जा सकता है -
सर्ग के अंत में।
36 मुक्तक काव्य है - एकांकी सदृश्यों को चमत्कृत करने में समर्थ पद्य

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